Tuesday, March 9, 2010

अपना पता न अपनी खबर छोड़ जाऊंगा

अपना पता न अपनी खबर छोड़ जाऊंगा



बे सािम्तयों की गर्द-ए-सफर छोड़ जाऊंगा






तुझसें अगर बिछड़ भी गया तो याद रख


चेहरे पे तेरे अपनी नज़र छोड़ जाऊंगा






ग़म दूरियों का दूर न हो पायेगा कभी


वह अपनी कुर्वतों का असर छोड़ जाऊंगा






गुजरेगी रात - रात मेरे ही ख्याल में


तेरे लिए मैं सिर्फ सहर छोड़ जाऊंगा






जैसे कि शम्आदान में बुझ जाये कोई शम्आ


बस यूं ही अपने जिस्म का घर छोड़ जाऊंगा






मैं तुझकों जीत कर भी कहां जीत पाऊंगा


लेकिन मुहब्बतों का हुनर छोड़ जाऊंगा






आंसू मिलेगें मेरे न फिर तेरे कह कहें


सूनी हर एक राह गुजर छोड़ जाऊंगा






सफर में अकेला तुझे अगले जन्म तक


है छोड़ना मुहाल , मगर छोड़ जाऊंगा






उस पार जा सकेगी तो यादें ही जायेगी


जी कुछ इधर मिला है इधर छोड़ जाऊंगा






ग़म होगा सबकों और जुदा होगा सबका ग़म


क्या जाने कितने दीद-ए - दर (भीखी आंख) छोड़ जाऊंगा






बस तुम ही याद रहोगें,ं कुरेदोगें तुम अगर


मैं अपनी राख में जो शरर(चिनगारी) छोड़ जाऊंगा






कुछ देरे को निगाह ठहर जायेगी जरूर

अफसाने में एक ऐसा खण्डर छोड़ जाऊंगा





कोई ख्याल तक भी न छू पायेगा मुझें

मैं चारों तरफ आठों पहर छोड़ जाऊंगा

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