मोह माया के संसार में “वास तो सभी ले रहे है फिर चाहें वह साधारण मनुश्य हो , अथवा विलक्षण प्रतिभा के धनी और लोक -परलोक की जानकारी प्राप्त मुनि श्री जब मायावी संसार में विरक्त भी रह सकते है और संासारिकता उनकी विरक्ति को क्षति ग्रस्त नहीं कर पाती तब तन पर वस्त्र हैं अथवा नहीं क्या फर्क पड़ता है। कहीं यह मात्र आकशZण में सहायक तो नहीं , ऐसा सुना है कि संसार में विपरीत का आकशZण है जैसे चुम्बक के विपरीत दो सिरे ही परस्पर आकर्शित होते है सामान सिरों को यदि पास में लाया जाता है तो प्रति कर्शित ही होते है इसी प्रकार संसार में विपरीत लिंग का आकशZण है इसी क्रम में कहीं कपड़े के व्यापारी और वस्त्र विहीन मुनि श्री का आकशZण तो नहीं । वाणी की अति किसी तपस्वी को रूश्ट न कर दें इसलिए क्षमा चहता हूं। मेरे तकोZ पर मनन और चिन्तन से अन्तत: लाभ की ही संभावना है यदि मेरी बातें सत्यता के ओत-प्रोत है तो सर्व समाज की कुंठा शान्त होगी। और यदि ऐसा नहीं तो सर्व समाज कि कुंठा का मुनि श्री अपनी ज्ञान ऊर्जा से समाधान करें ऐसी मेरी प्रार्थना है।
यह तो सभी ने जाना और समझा है कि मुनि श्री किसी वर्ग विशेश के लिए नहीं है अभी हाल में उन्होंने सभी समाज से कुछ अपीले कि थी जिसका सर्व समाज ने पूरे मन से आदर किया था और बहुतों ने उन कल्याणकारी प्रस्तावों को आत्मसात भी किया , तो क्या सर्व समाज की एक प्रार्थना मुनि श्री स्वीकार नहीं करेगें।
जब एक समाज विशेश के लोग मांसाहार जो उनके लिए खाद्य श्रृंखला है को गलत मान सकते है और इसे सिद्व किया जा सकता है
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