Tuesday, February 9, 2010

नन्ही कली- उसे भी खिलने दो

मत कुचलो नन्ही कली- उसे भी खिलने दो


और महकने दो अपने आंगन में



हम सभी ये बात जानते हे कि इस पृथ्वी की रचना में बिना नारी के कुछ भी सम्भव नहीं था इस रचना में जितना योगदान एक नर का है उतना ही योगदान नारी का भी है। क्योंकि जब तक नारी नहीं होगी तब तक एक परिवार की रचना व उसका विकास नहीं हो सकता। क्योंकि गृहस्वी रूपी गाड़ी के दो पहिये है एक नर और दूसरा नारी, इनमें से किसी एक के न होने से वह गाड़ी आगे नहीं बड़ सकती। फिर भी मुनश्य न जाने क्यों एक बेटा ही चहता है यह बेटी नहीं चाहता, क्योंकि वह अब भी एक बेटा और बेटी में फर्क समझता है, क्योंकि वह मानता है कि एक बेटा ही है जो उसके कुल को आगे बड़ा सकता है। बेटी क्या करेगी। वह बेटी के होने पर दु:ख करता है और बेटे के होने पर खुिशयां मनाता है पर ऐसा क्यो र्षोर्षो क्या एक बेटी होना पाप है र्षोर्षो क्या बेटी केा कभी भी वह दर्जा नहीं दिया जायेगा जो दजा्र एक बेटे को दिया जाता है। पर लोग ऐसा क्यो करते हैर्षोर्षो कि जब एक नारी मां बनने वाली होती है तो वह सोनोग्राफी करवाकर यह पता करती है कि एक लड़का है या लड़की, और जब उसे यह पता चलता है कि उसकी कोख में बेटा है तो वह खुिशयां मनाता हैऔर यदि बेटी है तो यह उसे मरवा देती है तब वह बेटी कहती है



गमो से हमारा नाता है - खुशी हमारे नसीब में कहां

कोई हमें पैदा कर प्यार करे - हम इतने खुश नसीब कहां



जब मां अपनी बच्ची को मारती है तो वह ये भूल जाती है कि वह भी बेटी थी उसने भी किसी की कोख से जन्म लिया होगा वह यह भूल जाती है ि कवह एक नारी है और नारी होकर अपनी बेटी को मार रही है। यदि इसी तरह लोग अपनी बेटी को मारते रहे तो इस पृथ्वी पर नये परिवारों की रचना खत्म हो जायेगी। क्योंकि एक नये परिवार की रचना बिना लड़की के सम्भव नहीं है और अगर इसी तरह भू्रण हत्या होती रही तो आगे क्या होगा ये सभी लोग समझ सकते है कि फिर क्या होगार्षोर्षो इस लिये हमें भू्रण हत्या पूरी तरह से बन्द करनी होगी और यह प्रयास करना होगा कि न हम अपनी बेटी को मारेगे और न ही किसी को बेटी मारने देगें। जिनके परिवार में बेटी है। उन्हें अपनी बेटी को एक बेटी से कम नहीं समझना चाहिए जिस घर में बेटी नहीं है उनसे पूछिये कि एक बेटी न होने का दर्द क्या होता है जब एक बेटी घर में हो तो उस घर में खुिशयों की कमी नहीं होती। आज एक बेटी किस प्रकार से एक बेटे से कम है वह किसी भी मोड़ पर एक बेटे से कम नहीं है आज ऐसा कौन सा काम है जो एक बेटा कर सकता है बेटी नहीं कर सकती। आज की लड़की पढ़ लिखकर घर से बाहर निकल रही है और एक बेटे के कन्धों से कन्धा मिलाकर चल रही है लड़की घर के काम कें साथ- साथ बाहर भी काम कर रही है और पैसा कमा रही है वह हर क्षेत्र में अपना पांव रखकर सफलता हासिल कर रही है। आज कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां पर एक लड़की ने अपनी दबदबा न बना कर रखा हो दिन पे दिन लड़कियां अपनी सफलता को हासिल करती हुई आगें बढ़ रही है। आज एक लड़की -लड़के की बराबरी करने में पीछे नहीं हैं आज हर लड़की अपने पांव पर खड़ी हो रही है। वह भी किसी के भरोसे पर रहना नहीं चाहती। इसलिए हमे अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिये और यह सोचना है और निश्चय करना है कि बेटी हमारे घर का चिराग है उसे पैदा करे और उसे एक बेटे की तरह पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाये। क्योंकि ाज एक बेटा अपनी शादी के बाद अपने मां-बाप को भूलाकर घर छोड़कर अगल रहने भी लगता है तब हम यह कर सकते है



कल तक घर की खुिशया था जो

आज हमें वह छोड़ गया

याद और खामोशी ऐसी उसकी

हम सबसे नाता तोड़ गया



पर एक बेटी अपने मां बाप को कभी नहीं भूलती वह अपने मां-बाप के उपकार याद रखती है वह बेटे की तरह अपने मां-बाप को नहीें भूलाती, और न ही उन्हें दु:ख देती है इसलिए जिनके यहां बेटी है वह अपनी बेटी में ही अपने बेटे को देखे और उसे अपने बेटे की तरह पाल पोसकर बड़ा करे और अपने बुड़ापे का सहारा बनाये। कुछ लोग ऐेसे भी होते है जो अपनी बेटी और बहू में भी फर्क करते है और उसे दहेज के लिए प्रताड़ित रकते है उसे मारते है और कुछ लोग तो अपनी बहू के लिये जलाकर भी मार देते है और यदि वह नहीं मारते तो वह स्वयं अपने आप को खत्म कर लेती है। जब एक लड़की अपने घर से शादी करके ससुराल जाती है-



हुये हावा पीले मेंहदी रचाई

बाबुल के घर से मिली है विदाई

तब उसे बाबुल से दुआ देकर उसकी विदाई करते है-

बाबुल की दुआयें लेती जा

जहां तुझकों सुखी संसार मिले

मायके की कभी न याद आये

ससुराल में इतना प्यार मिले



पर उसके बाबुल को क्या पता था जिस बेटी को उन्होंने इतनी नाजो से पाला -पोसकर बड़ा किया और उसे विदा किया ससुराल में जाकर उसे एक बेटी की तरह नहीं एक बहू की तरह ही रखा जायेगा अगर उसके दहेज मे थोड़ी भी कमी आ जाती है तो उसे हर वक्त परेशान किया जाता है उसे तिल-तिल कर मरने को कहां जाता है क्या वह सास यह नहीं सोचती ि कवह भी कभी बहू रही होगा। उसकी भी तो बेटी होगी अगर उसकी बेटी को भी इसी तरह मारा जाये परेशान किया जाये तो उसके दिल पर क्या बीतेगी।



यहां पर भीा एक बेटी और बहू यह सोचती है कि क्या मैने बेटी होने का पाप किया है र्षोर्षो क्या मुझे कभी भी वह प्यार नहीं दिया जायेगा जो लोग अपने बेटे को देते है। और बेटी भगवान से कहती है-



अब तो किये हो दाता आगे न की ज्यो

अगले जनम मोहे बिटियां न की ज्यो



इसलिये आप सभी से ये निवेदन है कि आप अपनी बेटी को जन्म लेने दे और अगर आपके घर में बहू आती है तो उसे अपनी बेटी की तरह ही रखे । अपनी बेटी और बहू में कोई फर्क न करे। जब हम ये सोचेगें तभी हम इन बुराईयों को दूर कर पायेगो। क्योंकि भू्रण हत्या, दहेज प्रथा दोनों ही बुराईयां समाज के लिए अभिशाप है ये दोनों ही समाज को बर्वाद कर देगे।
ओस की एक बून्द सी होती है बेटियां


स्पशZ खुरदरा हो तो रोती है बेटियां

रोशन करेगा बेटा तो एक ही कुल को

दो-दो कुल की लाज को ढोती है बेटियां

हीरा है अगर बेटा तो मोती है बेटियां

कांटों की राह पे ये खुद ही चलती रहेगी

और के लिये फूल ही बोती है बेटियां

विधि का विधान है यही दुनियां की रस्म है

मुठ्ठी में भरे नीर सी होती है बेटियां

नारी

नारी है एक पे्रम की मूरत।


भोली भाली जिसकी सूरत।।



हर एक कदम पर कश्ट उठाती।

लगती है प्रेम की परिपाती।।



पहले उससे शादी करते।

फिर उसको धोखा दे देते।।



अब क्या इसमें कमी आ गई।

क्या तेरी नियत बदल गई र्षोर्षो



फिर उसी को आदमी जिन्दा जलाते।

अपने लालच को दशाZते।।



पति की कई यातनायें सहती।

कभी कुछ न वो मुंह से कहती।।



आज भी न मिट सका दहेज का दानव।

इसी में फंसा है लालची मानव।।



हे. प्रभू! कुछ समझाओं इसको।

बन्द करो इस दहेज प्रथा को।।

Monday, February 1, 2010

सेक्स पर छूट मिलें

समलैगिंगता सवालों के कटघडे़ में खड़ी है। पहले इसे घृणा की दृिश्ट से देखा जाता था आज नज़रिया में परिवर्तन देखा गया है अधिकांश लोग इसमें सहमति दे रहे है कुछ खुलकर कुछ दबे मन से।

किसी ने यह देखा है बच्चे जब छोटे होते है उनमें भी इसी प्रकार के गुण दिखने को मिल जाते है जब वो आपने साथी के साथ खेलते है कुछ समय वितीत करते है या फिर अपने से बड़े या छोटे भाई के साथ भी, घर में , किसी खाली जगह पर यह करते है कुछ लोगों को इसकी आदत हो जाती है कुछ लोग इससे परे हो जाते है, लड़कियों के साथ भी ऐसा होता है। इस आदत से परे हो जाते है वो समलैगिंगता के दायरे से बाहर निकल जाते है जिसको इसकी लत लग जाती है वो समलैगिंग कहलाते है उनको इसकी आदत हो जाती है जैसे लड़की जब तक सेक्स नहीं करती इससे दूर रहती है एक बार सेक्स किया की वो इसकी आदी हो जाती है उसको सेक्स की दरकार बनी रहती है लड़कियां इस भावना को आसानी से छिपा लेती है लेकिन आंखें सब कुछ बायां करती है जिस्म की गर्मी जब सताती है और गर्मी नहीं बुझती तो वो आंखों में उतर आती है जो साफ तौर पर देखी जा सकती हैं।

समलैगिंक सम्बंध आज के दौर की उपज है इसका भी एक कारण है समाज में सेक्स करने पर प्रतिबंध। पहले के दशक में अपनी मर्जी से किसी के भी साथ सेक्स किया जा सकता था कोई प्रतिबंध नहीं था , ज्यों - ज्यों प्रतिबंध लगता गया , बलात्कार , और समलैगिंक जैसे मामलें में बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है, यह बात सत्य है जिस काम के लिए प्रतिबंध लगाया जाता है इंसान वो काम ही करता है यदि उसकों छूट दे दी जाए तो उस काम को करने में अनाकानी करने लगता है। जब सेक्स आसानी से किया जाता था तब इस तरह की कोई घटना घटित नहीं होती थी अब क्या कहें हर जगह प्रतिबंध पे प्रतिबंध लगा हुआ है ये नहीं कर सकते वो नहीं कर सकते।

मेरे नज़रियें से तो सेक्स को छूट दे देनी चाहिए जिसको जिसके साथ सेक्स करना हो वो कर सकताा है पर इसमें कोई जोर जबदस्ती नहीं होनी चाहिए यदि दोनों सहमत है तो कोई बात नहीं वो समभोग कर सकते है। इससे महिलाओं के प्रति हो रही हिंसात्मक घटनाओं में गिरावट अवश्य आएगी ।

फस्ट हैण्ड होनी चाहिए

जिस तरह का बदलाव देखा जा रहा है उससे ताजुब जरूर होता है शायद टेलीविजन का प्रभाव कहें या पिश्चमी सभ्यता का हावी होना, टेलीविजन पर प्यार मोहब्बत की बातें , फिल्मों और एपिसोड में इश्क करते हुए दिखाया जाना इस परिवर्तन के जिम्मेदार हो सकते हैर्षोर्षो संचार क्रांाति के आने के बाद तो इसमें सबसे बड़ा परिवर्तन आया है सभी के पास मोबाइल हो गये है चाहे उसकी आवश्यकता उसको हो अथवा नहीं। 10 -12 साल के लड़के-लड़कियों को मोबाइल की क्या आवश्यता रहती है ये तो उन से अच्छा कोई दूसरा नहीं बता सकता। हमारे जमाने में तो घर में ही फोन की सुविधा नहीं थी आज तो सभी के पास मोबाइल है जिसे रखने में ये अपनी शान समझते है। 24घण्टों मोबाइल लोगों के हाथों में बना रहता है घर में रह जाए तो लगता है कुछ खास चीज रह गई जिसके बिना हमारा काम ही नहीं हो सकता। पहले तो ऐसा नहीं था आदमी बिन मोबाइल के भी अपने कार्य को बखुबी निभाते थे। एक बात और की मोबाइल झूठ कहने वाला उपकरण भी है यह हम सभी को झूठ बोलना सीखता है दूसरों को बेवकूफ बनाने के काम भी करवाता है लोगों को इस पर शक भी नहीं होता। उनकों विश्वास करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रहता।

फिल्मों और टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले दृश्यों को देखकर सभी लोग सेक्स करना चाहते है चाहे लड़का हो या लड़की। वक्त के इस परिवर्तन ने उम्र की तमाम सीमाएं को तोड़ दिया है क्या 14 साल का लड़का- लड़की। वो भी सेक्स के बारे में जानने लगे है सेक्स का आंनद उठाने लगे है। लड़को का क्या है चल जाता है पर लड़कियां का क्या होता होगा, इतनी सी उम्र में सेक्स करना सीख जाते है, लड़कियां जिससे प्यार करती है उसे सब कुछ सौंप देती है अपना समझकर, पर लड़के ऐसा नहीं सोचते वो तो केवल इस्तेमाल करके छोड़ देते है यदि शादी की बात की जाए तो बहाने बनाते है नहीं तो कहते है कि लड़की फस्ट हैण्ड होनी चाहिए उसका किसी के साथ सम्बंध नहीं होना चाहिए, मैं तो एक बात कहूं कि जब तक लड़की की शादी नहीं होती वह फस्ट हैण्ड ही रहती है चाहे शादी के पहले कितनी बार सेक्स क्यों न कर ले। इसका एक उदाहरण किसी गाड़ी से लगाया जा सकताा है आदमी कोई गाड़ी को खरीदने किसी शोरूम जाता है तो गाड़ी को देखता है पसन्द करता है फिर खरीदता है शोरूम से वो गाड़ी जो खरीदता है वो फस्ट हैण्ड होती है चाहे उसकी टेस्ट डाइव कितने लोगों ने क्यों न किया हो, रहेगी फस्ट हैंड़। परन्तु लड़कें अपनी गिरेवान में झांककर नहीं देखते की वो क्या है क्या वो कुआंरे हैर्षोर्षो तो इसका जबाव किसी के पास नहीं होगा। खुद रावण है शादी के लिए सीता की आशा रखते है। ये तो वो ही बात हुई चित भी मेरी, पट भी मेरी, अन्टा मेरे बाप का।