Tuesday, February 9, 2010

नारी

नारी है एक पे्रम की मूरत।


भोली भाली जिसकी सूरत।।



हर एक कदम पर कश्ट उठाती।

लगती है प्रेम की परिपाती।।



पहले उससे शादी करते।

फिर उसको धोखा दे देते।।



अब क्या इसमें कमी आ गई।

क्या तेरी नियत बदल गई र्षोर्षो



फिर उसी को आदमी जिन्दा जलाते।

अपने लालच को दशाZते।।



पति की कई यातनायें सहती।

कभी कुछ न वो मुंह से कहती।।



आज भी न मिट सका दहेज का दानव।

इसी में फंसा है लालची मानव।।



हे. प्रभू! कुछ समझाओं इसको।

बन्द करो इस दहेज प्रथा को।।

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