Friday, January 29, 2010

नाच ना आवे आंगन टेड़ा

पिछले दो तीन दिनों से महात्मा गांधी अन्तर्राश्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की ख़बर कुछ ब्लॉग पर सुर्खियां बटोर ने काम कर रही है ख़बर पर लोग अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया भी दे रहे है ब्लॉग के माध्यम से अनिल चमड़िया व उनके साथीगण अपनी भड़ास निकालने की पूरी कोिशश में लग हुए है उन्होनें तो कुलपति महोदय पर ही इंजाम लगाया कि वो मेरे पीछे पडे़ है शायद आप विश्व सुन्दरी या जाने माने किसी पार्टी के नेता या फिर चोर तो नहीं, जो वीएन राय उनके पीछे पड़े है अनिल चमड़िया के पीछे पडे़ रहने के अलावा शायद उनके पास और कोई काम नहीं है चमड़िया जी को यह अवश्य ज्ञात होगा कि उनको विश्वविद्यालय में कुलपति महोदय ही लेकर आए थे जब विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में अध्यापकों का अभाव था और वो इस आस से उनकी नियुक्ति भी की थी कि वो छात्र-छात्राओं को पत्रकारिता के गुण सिखाएगें पर हुआ कुछ अलग हुआ वो अपनी एक कमेटी बनाते रहे, छात्रों को प्रशासन के खिलाफ भड़काने का काम करते रहे। उनके कुछ छात्र तो इतने अच्छे है जो कुलपति, प्रतिकुलपति, विभागाध्यक्ष, िशक्षकगण को गाली देने से भी नहीं चूकते। ये बात सभी के संज्ञान में है पर कहने वाला कोई नहींर्षोर्षो शायद यही िशक्षा आपने छात्रों को दी है दे भी रहे है कि अपने से बड़ों को गाली दें उनका अनादरण करें। बहुत अच्छा पाठ पढ़ाया है आपने।

अनिल चमड़िया जिस प्रकार का आरोप लगा रहे है यदि उन पर गौर फरमाया जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी होने में जरा-सी देर भी नहीं लगेगी। आप वीएन राय पर आरोप लगा रहे है कि स्वजातीय लोगों की बातों में आकर आपकी नियुक्ति को निरस्त किया है यदि ऐसा ही है तो आप इतने माह तो इस विश्वविद्यालय में कैसे और किस आधार पर टीके रहेर्षोर्षो यदि जातिगत ही मामला है तो विश्वविद्यालय में आपकों भी पता होगा कि दलित छात्रों की संख्या कितनी है जहां तक पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग दोनों से तो ज्यादा ही होगी, और तो और कुछ विभाग तो ऐसे भी है जहां तो सामान्य वर्ग का एक भी छात्र नहीं है तो इसको आप क्या कहेगें दलितवादी निणर्यर्षोर्षो आप तो यहां तक भी कहते है कि यहां पढ़ रहे लड़कों के दबाव में आकर वीसी ने अपनी नियुक्ति की थी, कहीं ऐसा सुना है किसी विश्वविद्यालय के छात्रों के दबाव में आकर किसी की नियुक्ति हुई है तब तो छात्र यदि चाहेगें कि किसी आठ पास या पांचवी फेल को टीचर बना दिया जाए तो क्या वो टीचर बन जाएगा, चाहे उसने सम्बंधित फील्ड में कांट्रीव्यूशन क्यों न किया हो, विश्वविद्यालय में कर्मचारियों की नियुक्ति उसकी योग्यता के आधार पर वीसी या सम्बंधित नियुक्त कर सकते है पर किसी प्रोफेसर/रीडर/लैक्चरार को नियुक्त नहीं कर सकतार्षोर्षो जब तक वो टीचर बनने की पूर्ण योग्यता नहीं रखतार्षोर्षो यदि आपको लगाता है कि आप बिना डिग्रीधारक पैमाने पर फिट के आधार पर प्रोफेसर बनाये जाने चाहिए तो आपने मित्र और साथीगण जो अभी एम.ए. कर रहे है या फिर एम.फिल/पी-एचडी कर रहे है उनको भी सलाह दें कि वो पढ़ाई छोड़ दे न्तब भी वो प्रोफेसर बन जाएगेंर्षोर्षोर्षोर्षो मेरा यहा दो बार र्षोर्षोर्षोर्षो लगाने का तात्पर्य केवल इतना है कि सभी लोगों को पढ़ाई छोड़ देनी चाहिए इसमें मैं भी शामिल हूं क्योंकि मैंने भी बी.कॉम पास किया है मुझें पी-एचडी नहीं करनी चाहिए क्योंकि पी-एचडी में पूरे-पूरे दो तीन साल के बाद, तब भी संभावनाएं ही है कि टीचर बनूगां या नहीं, पर आप तो बिना डिग्री के पैमाना पूरा कर रहे है। रही बात अपनी बसी-बसाई गृहस्थी छोड़कर पराए शहर में आने की, यह तो धन का मोह ही है जब पैसे के खातिर इंसान अपना जिस्म, हत्या, चोरी-डकैती-लूटपात यहां तक की अपने मां-बाप को भी बेच देता है तब आपनी बसी-बसाई घर-गृहस्थी को छोड़कर आना कौन सी बड़ी बात हैै।

जिस एक्जीक्यूटिव कमेटी (ईसी) की बात आप कहे रहे है उसमें 18 सदस्य हैं और केवल 8 सदस्यों ने वीसी के कहने पर आपको निकाल दिया। यानि आपके कहने का मतलब यह भी है कि ईसी में जितने भी सदस्य है वो नासमझ/अज्ञान है सारा ज्ञान आप में कूट-कूटकर भरा हुआ है। आपका तो यहां तक कहना है कि वीएन राय के कामकाज के तरीके के कारण विश्णु नागर ने ईसी से इस्तीफा दे दिया है इसका तात्पर्य यह है कि कुलपति महोदय को आप से सीखना पडे़गा कि किस प्रकार काम किया जाता है तब तो वीएन राय जी को प्रोफेसर न बनाकर अपनी जगह कुलपति बनना चाहिएर्षोर्षो रही बात विश्णु नागर जी के इस्तीफे की कि किस कारण से उन्होंने ईसी से इस्तीफा दिया। ये तो उन से अच्छा और कोई नहीं बता सकतार्षोर्षो

विश्वविद्यालय में जिस प्रकार की गतिविधियां इस समय चल रही है यदि प्रशासन नेे जल्द ही कोई उचित कदम नहीं उठाए तो विश्वविद्यालय की गरिमा को घूमिल होने से कोई नहीं बचा सकता।

यह लेख किसी भावेश में आकर नहीं लिखा गया है जो देख रहा हंू दिख रहा है वो ही लिखा है , थोड़ा आप भी गौर कीजिए, मेरे हिसाब से तो पत्रकारिता किसी एक पक्ष को ध्यान में रखकर नहीं की जाती, जब तक दोनों पक्षों को सुन न लिया जाए तब तक अपने विचार नहीं देना चाहिए। मैंने अनिल चमड़िया के द्वारा लिखा लेख व वीएन राय दोनों के लेख पढ़कर ही यह लेख लिखा है।

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